संगरिया। मुख्यमंत्री कि गौरव यात्रा से पूर्व आमजन को निमंत्रण देने हेतु सांसद निहालचंद द्वारा निकाली जा रही सांसद उपयात्रा का संगरिया पहुंचने पर भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा रतनपुरा कैंचीयां पर भव्य स्वागत किया गया। कार्यकर्ताओं ने रतनपुरा कैंची से मोटरसाइकिल, कार, जीप रैली के रूप में यात्रा का शहर में प्रवेश किया। रतनपुरा रोड, वितान विहार सिनेमा रोड, मुख्य बाजार होते हुए यात्रा का समापन भगतपुरा रोड पर हुआ। जहां कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए सांसद निहालचंद ने कहा कि इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य 8 सितंबर को संगरिया पहुंच रही मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की सभा में अधिकतम लोगों की भागीदारी करना है, कार्यकर्ता घर-घर जाकर लोगों को निमंत्रण दे। जिलाध्यक्ष बलवीर विश्नोई ने कार्यकर्ताओं को मुख्यमंत्री का ऐतिहासिक स्वागत की बात कही। इस मौके पर संगरिया नगर व देहात के अनेक कार्यकर्त्ता व पदाधिकारी मौजूद थे।
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Friday, August 24, 2018
धीरेन्द्रसिंह को इस बार नहीं मिला गंगानगर जिला, लखोटिया का बीकानेर तबादला
श्रीगंगानगर। पुलिस महानिरीक्षक दिनेश एमएन ने शुक्रवार को आदेश जारी कर अनेक पुलिस निरीक्षकों के तबादले किये हैं। श्रीगंगानगर जिले से सिर्फ एक ही तबादला हुआ है। वेदप्रकाश लखोटिया जिले में तीन साल पूर्ण कर चुके थे इस कारण चुनाव आयोग के दिशा-निर्देर्शोंनुसार उनको चुनावों से पूर्व दूसरे जिले में भेजा गया है। वहीं धीरेन्द्रसिंह शेखावत को इस बार गंगानगर जिला नहीं मिला है और उन्हें हनुमानगढ़ में ही अगले दो साल निकालने होंगे।
हासिलशुदा जानकारी के अनुसार वेद्रपकाश लखोटिया को श्रीगंगानगर से बीकानेर, हनुमानगढ़ से रामप्रताप बिश्रोई को श्रीगंगानगर, राहुल यादव को हनुमानगढ़ से श्रीगंगानगर, विष्णु खत्री को हनुमानगढ़ से चुरू, नरेश कुमार गेरा को हनुमानगढ़ से चुरू, बहादुरसिंह शेखावत को बीकानेर से हनुमानगढ़, विष्णु दत्त को बीकानेर से हनुमानगढ़, अरविंद कुमार को बीकानेर से हनुमानगढ़, लक्ष्णमणसिंह राठौड़ को बीकानेर से श्रीगंगानगर, पुष्पेन्द्र झाझडिय़ा को चुरू से हनुमानगढ़, राजेश स्याग को हनुमानगढ़ से श्रीगंगानगर, प्रदीप सिंह को हनुमानगढ़ से बीकानेर, महेन्द्रदत्त शर्मा को हनुमानगढ़ से चुरू स्थानांतरित किया गया है। इसके अतिरिक्त धीरेन्द्रसिंह शेखावत को इस बार बीकानेर से हनुमानगढ़ भेजा गया है। इससे पहले वे हमेशा ही बीकानेर से श्रीगंगानगर में चुनावों के समय स्थानांतरण करवाते थे। इस बार चुनावों के कारण उनको भी बड़ा झटका धीरे से लगा है। चुनाव आयोग ने गत विधानसभा चुनावों में जिन अधिकारियों की ड्यूटी जिस विधानसभा क्षेत्र की थी, उस क्षेत्र में उनकी नियुक्ति पर रोक लगा दी थी। अब धीरेन्द्रसिंह जिला मुख्यालय पर ही नियुक्त रहने के लिए इच्छुक रहते हैं तो इस बार उनको यह सफलता नहीं मिल रही थी, इस कारण उन्होंने हनुमानगढ़ जाना उचित समझा किंतु वहां वे कामयाब हो पायेंगे, यह तय नहीं है।
हासिलशुदा जानकारी के अनुसार वेद्रपकाश लखोटिया को श्रीगंगानगर से बीकानेर, हनुमानगढ़ से रामप्रताप बिश्रोई को श्रीगंगानगर, राहुल यादव को हनुमानगढ़ से श्रीगंगानगर, विष्णु खत्री को हनुमानगढ़ से चुरू, नरेश कुमार गेरा को हनुमानगढ़ से चुरू, बहादुरसिंह शेखावत को बीकानेर से हनुमानगढ़, विष्णु दत्त को बीकानेर से हनुमानगढ़, अरविंद कुमार को बीकानेर से हनुमानगढ़, लक्ष्णमणसिंह राठौड़ को बीकानेर से श्रीगंगानगर, पुष्पेन्द्र झाझडिय़ा को चुरू से हनुमानगढ़, राजेश स्याग को हनुमानगढ़ से श्रीगंगानगर, प्रदीप सिंह को हनुमानगढ़ से बीकानेर, महेन्द्रदत्त शर्मा को हनुमानगढ़ से चुरू स्थानांतरित किया गया है। इसके अतिरिक्त धीरेन्द्रसिंह शेखावत को इस बार बीकानेर से हनुमानगढ़ भेजा गया है। इससे पहले वे हमेशा ही बीकानेर से श्रीगंगानगर में चुनावों के समय स्थानांतरण करवाते थे। इस बार चुनावों के कारण उनको भी बड़ा झटका धीरे से लगा है। चुनाव आयोग ने गत विधानसभा चुनावों में जिन अधिकारियों की ड्यूटी जिस विधानसभा क्षेत्र की थी, उस क्षेत्र में उनकी नियुक्ति पर रोक लगा दी थी। अब धीरेन्द्रसिंह जिला मुख्यालय पर ही नियुक्त रहने के लिए इच्छुक रहते हैं तो इस बार उनको यह सफलता नहीं मिल रही थी, इस कारण उन्होंने हनुमानगढ़ जाना उचित समझा किंतु वहां वे कामयाब हो पायेंगे, यह तय नहीं है।
Tuesday, August 21, 2018
अशोक चाण्डक ने जोर का झटका धीरे से दिया
समाजसेवी अशोक चाण्डक ने मंगलवार को प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यालय में पहुंचकर प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट के सामने पार्टी की प्राथमिकता सदस्यता ग्रहण की। श्री पायलट ने श्री चाण्डक जैसे कद्दावर समाजसेवी के पार्टी में शामिल होने का तहेदिल से स्वागत किया। उन्होंने विश्वास जताया कि उनके पार्टी में आने से निश्चित ही कांग्रेस जिले में और मजबूत बनकर सामने आयेगी।
अशोक चाण्डक ने सक्रिय राजनीति में शामिल होकर धमाका कर दिया। वे कभी भी पहले सक्रिय राजनीति में नहीं थे और अपने ही व्यापार को संभाल रहे थे जबकि राजनीति की जिम्मेदारी अपने छोटे भाई अजय चाण्डक को दी हुई थी। अजय चाण्डक पहले नगर परिषद के उपसभापति रह चुके थे और वर्तमान में सभापति हैं। उनका कार्यकाल अगले साल पूरा हो जायेगा।
समाजसेवी की छवि रखने वाले अशोक चाण्डक भले ही पहले कभी सक्रिय राजनीति में नहीं रहे हों लेकिन अपनी राजनीतिक चालों से बड़ों-बड़ों को उन्होंने ढेर किया है। वार्ड नं 28 शुद्ध रूप से अरोड़वंशियों का वार्ड है। 2009 के नगर परिषद चुनावों में इस वार्ड में 11 अरोड़वंशी खड़े हुए थे। सभी ने अपना समर्थन अशोक चाण्डक की रणनीति के चलते अजय चाण्डक को दे दिया था। अजय निर्वाचित हुए तो सभापति के चुनावों में 48 पार्षदों ने उन्हें अपना समर्थन दिया। यह अभूतपूर्व था। आज तक के इतिहास में सभापति के किसी भी प्रत्याशी को इतने वोट नहीं मिले थे। यह सब अशोक चाण्डक की रणनीति का ही कमाल था।
वे भले ही स्वयं सक्रिय राजनीति में नहीं रहे हों लेकिन प्रशासन-पुलिस में उनका प्रभाव रहा है और इस बात को शहरवासी दरकिनार नहीं कर सकते। आज तक जो भी कार्य असंभव समझा जाता रहा हो, वह अशोक चाण्डक ने अपनी चतुराई का इस्तेमाल करते हुए संभव बनाया है। इस तरह के चमत्कार वे पहले भी कई बार कर चुके हैं।
अब वे कांग्रेस में शामिल हो गये हैं तो निश्चित रूप से उन नेताओं में खलबली मच जायेगी, जो स्वयं को जीता हुआ मान रहे थे। कांगे्रस में आधा दर्जन उम्मीदवार टिकट मांगने के लिए लाइन में थे लेकिन इन सभी को चाण्डक ने जोर का झटका धीरे से दे दिया है। भूकम्प के बाद जैसी स्थिति तो भाजपा में भी है। किसी ने नहीं सोचा था कि राजनीति के समीकरण इस तरह से भी बदल सकते हैं। निश्चित रूप से आने वाले दिनों में श्रीगंगानगर शहर की राजनीति का केन्द्र चाण्डक का कार्यालय बन सकता है जहां चुनावों की सभी तरह की रणनीतियां बनेंगी और पूरी भी होंगी।
Sunday, August 19, 2018
श्रीगंगानगर अब विधवा हो गयी है, हर कोई देवर बनने को तैयार!
टाक का शक्ति प्रदर्शन फेल हुआ तो एक और सेठ श्रीकृष्ण मील आ गये मैदान में
हर सेठ की है इस बार विधायक बनने की चाहत
श्रीगंगानगर। जब कोई जवान महिला विधवा हो जाती है तो हर कोई उसका देवर बनने को तैयार हो जाता है। इस तरह का हाल श्रीगंगानगर विधानसभा क्षेत्र को लेकर है। जिसके चेहरे को शहर की 10 प्रतिशत जनता भी नहीं जानती, वह भी विधायक बनने के लिए दावे कर रहा है और मीडिया को माध्यम बनाकर अपना नाम आगे कर रहा है। दौड़ में कुछ लोग आ रहे हैं तो कुछ बाहर भी हो रहे हैं। दौड़ में सबसे पहले बाहर होने वालों में प्रहलाद राय टाक शामिल हुए। उन्होंने अपनी बंद मु_ी राजनीतिक अनुभव की कमी के चलते खोल दी और फिर वही हुआ जिसका भय था। उनका नाम शहर से चर्चा से हट गया। अब नया सेठ आये हैं। नाम है श्रीकृष्ण मील। व्यापारी हैं। सूरतगढ़ के पूर्व विधायक गंगाजल मील के भाई तथा पूर्व जिला प्रमुख पृथ्वीराज मील के चाचा हैं। इसके अतिरिक्त एक विवादित डॉक्टर भी मैदान में आ रहा है। अरोड़वंशी होने के नाम पर वह खुद को भावी विधायक पेश कर रहा है। उसके चेहरे को अधिकांश मीडियाकर्मी भी नहीं जानते। कुछ भाजपाई ही उसको आगे कर रहे हैं। यह भाजपाई ही पिछली बार भाजपा को हराने में अहम भूमिका निभा चुके हैं।
पिछले कुछ सालों से सक्रिय राजनीति में सक्रिय अनेक नेता स्वयं को टिकट का दावेदार पहले से ही बताते रहे हैं। इनमें जगदीश जांदू, जेएम कामरा, राजकुमार गौड़, अंकुर मिगलानी, जयदीप बिहाणी, अर्जुन राजपाल, ललित बहल आदि कांग्रेसी नेता शामिल थे। वहीं भाजपा की ओर से पूर्व मंत्री राधेश्याम गंगानगर, उनके पुत्र रमेश राजपाल, महेश पेड़ीवाल, शिव स्वामी,राजकुमार सोनी, अजय चाण्डक, संजय महीपाल, प्रहलाद राय टाक आदि शामिल थे। इन लोगों ने खुलकर दावेदारी भी पेश की है।
वहीं अरोड़वंशी बाहुल्य विधानसभा क्षेत्र होने के कारण अरोड़वंशी के नाम पर एक दर्जन से ज्यादा चेहरे पहले से थे। इनमें अर्जुन राजपाल, राधेश्याम गंगानगर, रमेश राजपाल, नमिता सेठी, जेएम कामरा, अंकुर मिगलानी, ललित बहल आदि-आदि। अब इनमें एक और नया नाम जुड़ गया है। अरोड़वंशी है। भाजपा से नाता रखता रहा है। अब भाजपाई का एक ही विरोधी गुट इस चेहरे को आगे कर चुनाव मैदान में उतारने का प्रयास कर रहा है। यह भी पैसे वाला है। खूब पैसा कमाया है डॉक्टरी के पेशे से। या यूं कहा जा सकता है कि जिले की जनता की मजबूरियों को हथियार बनाकर लूटा है। अब इस पैसे को लूटने के लिए ही भाजपा के लोग इस चेहरे को एमएलए का ख्वाब दिखा रहे हैं।
वहीं प्रहलाद राय टाक ने पिछले दिनों अपनी बंद मु_ी खोल दी। लोगों को शानदार भोजन खिलाने का लालच भी दिया किंतु आये 1 हजार लोग भी नहीं। उनके नजदीकी लोग ही अब मान रहे हैं कि टाक ने बंद मु_ी खोलकर बहुत बड़ी गलती कर दी। उन्होंने जहां लाखों खर्च करके अपने कार्यक्रम के सफल होने का प्रचार करवाया हो लेकिन शहरवासी जानते हैं कि वह वर्चुअल था। उसमें हकीकत नहीं थी। जो नेता शक्ति प्रदर्शन कर रहा हो और वह एक हजार लोग भी नहीं जुटा पा रहा हो तो इसका अर्थ यही है कि वह दौड़ से बाहर हो गया। ईमानदारी से विचार करेंगे तो श्री टाक को भी लगेगा कि शहरी क्षेत्र से तो उतने भी लोग नहीं आये, जितनी आशा की जा रही थी। जो भी कुम्हार बिरादरी के लोग आये, वह बाहरी क्षेत्र से थे।
टाक की बंद मुट्ठी खुलते ही अब एक और व्यापारी नेता ने विधायक बनने के ख्वाब देखने आरंभ कर दिये हैं। श्रीकृष्ण मील बड़े व्यापारी हैं। संयुक्त व्यापार मंडल के अध्यक्ष रहे हैं। नगर परिषद सभापति बनने का भी सपना देखा था जो पूरा नहीं हो पाया। अब वह सीधे विधायक बनने के लिए कमर कस रहे हैं। पिछली बार कांगे्रस प्रत्याशी भी जाट थे और अरोड़वंशियों ने जननेता की छवि होने के बावजूद उनको नकार दिया था। पिछले पांच सालों में अरोड़वंशियों ने अपनी अनदेखी को प्रशासन, राजनीतिक, पुलिस आदि क्षेत्रों में महसूस किया है। इस कारण वे अरोड़वंशी को ही विजयी बनाने का प्रयास करेंगे ताकि उनके समाज की खोई हुई प्रतिष्ठा तो वापिस आ जाये। इससे उन सेठ लोगों को गहरा धक्का लग सकता है जो सिर्फ पैसों के दम पर ही विधानसभा में पहुंचने का सपना देख रहे हैं।
हर सेठ की है इस बार विधायक बनने की चाहत
श्रीगंगानगर। जब कोई जवान महिला विधवा हो जाती है तो हर कोई उसका देवर बनने को तैयार हो जाता है। इस तरह का हाल श्रीगंगानगर विधानसभा क्षेत्र को लेकर है। जिसके चेहरे को शहर की 10 प्रतिशत जनता भी नहीं जानती, वह भी विधायक बनने के लिए दावे कर रहा है और मीडिया को माध्यम बनाकर अपना नाम आगे कर रहा है। दौड़ में कुछ लोग आ रहे हैं तो कुछ बाहर भी हो रहे हैं। दौड़ में सबसे पहले बाहर होने वालों में प्रहलाद राय टाक शामिल हुए। उन्होंने अपनी बंद मु_ी राजनीतिक अनुभव की कमी के चलते खोल दी और फिर वही हुआ जिसका भय था। उनका नाम शहर से चर्चा से हट गया। अब नया सेठ आये हैं। नाम है श्रीकृष्ण मील। व्यापारी हैं। सूरतगढ़ के पूर्व विधायक गंगाजल मील के भाई तथा पूर्व जिला प्रमुख पृथ्वीराज मील के चाचा हैं। इसके अतिरिक्त एक विवादित डॉक्टर भी मैदान में आ रहा है। अरोड़वंशी होने के नाम पर वह खुद को भावी विधायक पेश कर रहा है। उसके चेहरे को अधिकांश मीडियाकर्मी भी नहीं जानते। कुछ भाजपाई ही उसको आगे कर रहे हैं। यह भाजपाई ही पिछली बार भाजपा को हराने में अहम भूमिका निभा चुके हैं।
पिछले कुछ सालों से सक्रिय राजनीति में सक्रिय अनेक नेता स्वयं को टिकट का दावेदार पहले से ही बताते रहे हैं। इनमें जगदीश जांदू, जेएम कामरा, राजकुमार गौड़, अंकुर मिगलानी, जयदीप बिहाणी, अर्जुन राजपाल, ललित बहल आदि कांग्रेसी नेता शामिल थे। वहीं भाजपा की ओर से पूर्व मंत्री राधेश्याम गंगानगर, उनके पुत्र रमेश राजपाल, महेश पेड़ीवाल, शिव स्वामी,राजकुमार सोनी, अजय चाण्डक, संजय महीपाल, प्रहलाद राय टाक आदि शामिल थे। इन लोगों ने खुलकर दावेदारी भी पेश की है।
वहीं अरोड़वंशी बाहुल्य विधानसभा क्षेत्र होने के कारण अरोड़वंशी के नाम पर एक दर्जन से ज्यादा चेहरे पहले से थे। इनमें अर्जुन राजपाल, राधेश्याम गंगानगर, रमेश राजपाल, नमिता सेठी, जेएम कामरा, अंकुर मिगलानी, ललित बहल आदि-आदि। अब इनमें एक और नया नाम जुड़ गया है। अरोड़वंशी है। भाजपा से नाता रखता रहा है। अब भाजपाई का एक ही विरोधी गुट इस चेहरे को आगे कर चुनाव मैदान में उतारने का प्रयास कर रहा है। यह भी पैसे वाला है। खूब पैसा कमाया है डॉक्टरी के पेशे से। या यूं कहा जा सकता है कि जिले की जनता की मजबूरियों को हथियार बनाकर लूटा है। अब इस पैसे को लूटने के लिए ही भाजपा के लोग इस चेहरे को एमएलए का ख्वाब दिखा रहे हैं।
वहीं प्रहलाद राय टाक ने पिछले दिनों अपनी बंद मु_ी खोल दी। लोगों को शानदार भोजन खिलाने का लालच भी दिया किंतु आये 1 हजार लोग भी नहीं। उनके नजदीकी लोग ही अब मान रहे हैं कि टाक ने बंद मु_ी खोलकर बहुत बड़ी गलती कर दी। उन्होंने जहां लाखों खर्च करके अपने कार्यक्रम के सफल होने का प्रचार करवाया हो लेकिन शहरवासी जानते हैं कि वह वर्चुअल था। उसमें हकीकत नहीं थी। जो नेता शक्ति प्रदर्शन कर रहा हो और वह एक हजार लोग भी नहीं जुटा पा रहा हो तो इसका अर्थ यही है कि वह दौड़ से बाहर हो गया। ईमानदारी से विचार करेंगे तो श्री टाक को भी लगेगा कि शहरी क्षेत्र से तो उतने भी लोग नहीं आये, जितनी आशा की जा रही थी। जो भी कुम्हार बिरादरी के लोग आये, वह बाहरी क्षेत्र से थे।
टाक की बंद मुट्ठी खुलते ही अब एक और व्यापारी नेता ने विधायक बनने के ख्वाब देखने आरंभ कर दिये हैं। श्रीकृष्ण मील बड़े व्यापारी हैं। संयुक्त व्यापार मंडल के अध्यक्ष रहे हैं। नगर परिषद सभापति बनने का भी सपना देखा था जो पूरा नहीं हो पाया। अब वह सीधे विधायक बनने के लिए कमर कस रहे हैं। पिछली बार कांगे्रस प्रत्याशी भी जाट थे और अरोड़वंशियों ने जननेता की छवि होने के बावजूद उनको नकार दिया था। पिछले पांच सालों में अरोड़वंशियों ने अपनी अनदेखी को प्रशासन, राजनीतिक, पुलिस आदि क्षेत्रों में महसूस किया है। इस कारण वे अरोड़वंशी को ही विजयी बनाने का प्रयास करेंगे ताकि उनके समाज की खोई हुई प्रतिष्ठा तो वापिस आ जाये। इससे उन सेठ लोगों को गहरा धक्का लग सकता है जो सिर्फ पैसों के दम पर ही विधानसभा में पहुंचने का सपना देख रहे हैं।
Tuesday, August 7, 2018
पुलिस और प्रशासन अब बिजी रहेगा!
10 अगस्त को चुनाव आयोग के साथ बैठक के बाद नहीं मिलेगा पानी पीने को भी समय
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