विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में करोड़ों का जीवन संकट में, जिंदगी भर की कमाई पानी में बह गयी, एक दिन भी चर्चा नहीं
मंत्रीपरिषद के प्रधान ने भी नहीं किया हवाई दौरा
श्रीगंगानगर। अमेरिका में पैसा है तो वहां पैसे की कदर नहीं है। सुबह कमाया और शाम को खा लिया। भारत देश में पैसा नहीं है किंतु इन्सान बहुत हैं। इस कारण यहां इन्सान की कदर नहीं है। एक हादसे में दर्जनों लोग मर भी जायें तो सरकार इसको गंभीरता से नहीं लेती। वह इसको सिस्टम का एक हिस्सा मानती है और मानती है कि भारत जैसे गरीब देश में 50-100 लोग एक हादसे में मारे जा सकते हैं। (हालांकि सरकार खुद को विश्व की सबसे बड़ी उभरती अर्थव्यवस्था भी मानती है) सरकार का आता है बस एक ट्विट। ज्यादा शोर मचे तो संबंधित जिले के एसपी-कलक्टर का तबादला। संबंधित तहसीलदार/एसडीएम-डीएसपी-एसएचओ का निलम्बन। उस समस्या का हल निकालने के लिए सरकार पर न तो दबाव होता है और न ही वह अपनी जिम्मेदारी समझती है। जिस जनता के पैसे से सरकार हवाई जहाज में उड़ती है उसी जनता की सुरक्षा के लिए सरकार के पास पैसे नहीं होते। जनता यह सोचकर संतुष्ट हो जाती है कि अखबार-टीवी पर खबर आ गयी। उनका भला होगा, लेकिन वह भला पिछले 70 सालों में न जाने विकास की तरह कहां खो गया।
देशकाल के लिए यह दिन बहुत ही दर्दभरे निकल रहे हैं, क्योंकि उत्तराखण्ड, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात, पूर्वोत्तर आदि राज्यों में बाढ़ ने तबाही मचाई हुई है। करोड़ों लोग इससे प्रभावित हैं। इन लोगों की खरबों रुपये की सम्पत्ति पानी में बह गयी और संसद में एक दिन भी इन लोगों के लिए चर्चा नहीं होती। यह मान लिया गया है कि बाढ़ का कोई समाधान नहीं है और यह प्राकृतिक आपदा है।
कांग्रेस ने 50 साल से ज्यादा देश में राज्य किया। मानसून के दौरान नदियों में पानी का बहाव ज्यादा होने की स्थिति में उसका किस तरह से प्रबंधन किया जाये, यह कभी सोचा ही नहीं। जनता को उसकी हालत पर छोड़ दिया गया। सरकार ने भी कहा, तेरा रब्ब रक्खा, याने तुझे ईश्वर ही सहायता दे सकता है, हम नहीं।
2014 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने नदियों को आपस में जोडऩे का संकल्प अपने चुनावी घोषणा पत्र में किया था। इससे लोगों को आस बंधी थी कि बाढ़ जैसी विपदा से उनको भविष्य में छुटकारा मिल जायेगा। हालांकि इससे पहले 1999 अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने भी ऐसा ही वादा किया था। वह भी वादा सिर्फ वादा ही रह गया था और उसके 15 सालों बाद भाजपा ने इसे पुन: चुनावी घोषणा पत्र में शामिल किया किंतु 4 साल से ज्यादा का समय बीत गया, इस मामले में हुआ कुछ भी नहीं।
देश में एक सरकारी संस्था जिसको संसद कहा जाता है। संसद को विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश का मंदिर भी कहा जाता है। यहां देश के सबसे बड़े शुभचिंतक बैठकर चिंता करते हैं। इन शुभचिंतकों को डिजिटल भारत में भी करोड़ों भारतीयों के उजड़ जाने की खबर नहीं मिलती है। वे इस पर कोई चिंता नहीं करते हैं। एक पूरे दिन इस पर चर्चा नहीं होती और कोई भी शुभचिंतक यह नहीं कहता कि वह बाढ़ प्रभावित जनता के साथ है।
आतंकादी घटनाओं के दशकों लम्बे दौर और चार युद्ध में भी भारत ने इतने नागरिक नहीं खोये होंगे जितने बाढ़ ने। इसके बावजूद आज तक सड़क दुर्घटना से रोकथाम और बाढ़ से राहत चुनावी मुद्दे ही नहीं बने। किसी भी दल ने आगे बढ़कर नहीं कहा कि उसको वोट दिया जाये तो वह लोगों को बाढ़ से राहत दिलायेगा। सड़क दुर्घटनाओं की रोकथाम करेगा। हर साल मानसून आता है और तबाही लेकर आता है। सैकड़ों लोग मारे जाते हैं। दशकों से बाढ़ की मार झेल रहे लोगों ने भी मान लिया है कि यह कुदरत की मार है। इसमें सरकार कुछ नहीं कर सकती।
मंत्रीपरिषद के प्रधान यह घोषणा करते हैं कि देश विश्व की छठी सबसे मजबूत व्यवस्था बन गया है, किंतु उनके पास समय नहीं है कि वह अपने प्यारे सवा सौ करोड़ देशवासियों में शामिल इन करोड़ों लोगों की कुशलक्षेम पूछने के लिए वे जा आएं। वह अफ्रीका जैसे देशों में घूम आये किंतु हवाई जहाज से एक चक्कर भी बाढ़ प्रभावित इलाकों का नहीं लगाया।
मंत्रीपरिषद के प्रधान ने भी नहीं किया हवाई दौरा
श्रीगंगानगर। अमेरिका में पैसा है तो वहां पैसे की कदर नहीं है। सुबह कमाया और शाम को खा लिया। भारत देश में पैसा नहीं है किंतु इन्सान बहुत हैं। इस कारण यहां इन्सान की कदर नहीं है। एक हादसे में दर्जनों लोग मर भी जायें तो सरकार इसको गंभीरता से नहीं लेती। वह इसको सिस्टम का एक हिस्सा मानती है और मानती है कि भारत जैसे गरीब देश में 50-100 लोग एक हादसे में मारे जा सकते हैं। (हालांकि सरकार खुद को विश्व की सबसे बड़ी उभरती अर्थव्यवस्था भी मानती है) सरकार का आता है बस एक ट्विट। ज्यादा शोर मचे तो संबंधित जिले के एसपी-कलक्टर का तबादला। संबंधित तहसीलदार/एसडीएम-डीएसपी-एसएचओ का निलम्बन। उस समस्या का हल निकालने के लिए सरकार पर न तो दबाव होता है और न ही वह अपनी जिम्मेदारी समझती है। जिस जनता के पैसे से सरकार हवाई जहाज में उड़ती है उसी जनता की सुरक्षा के लिए सरकार के पास पैसे नहीं होते। जनता यह सोचकर संतुष्ट हो जाती है कि अखबार-टीवी पर खबर आ गयी। उनका भला होगा, लेकिन वह भला पिछले 70 सालों में न जाने विकास की तरह कहां खो गया।
देशकाल के लिए यह दिन बहुत ही दर्दभरे निकल रहे हैं, क्योंकि उत्तराखण्ड, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात, पूर्वोत्तर आदि राज्यों में बाढ़ ने तबाही मचाई हुई है। करोड़ों लोग इससे प्रभावित हैं। इन लोगों की खरबों रुपये की सम्पत्ति पानी में बह गयी और संसद में एक दिन भी इन लोगों के लिए चर्चा नहीं होती। यह मान लिया गया है कि बाढ़ का कोई समाधान नहीं है और यह प्राकृतिक आपदा है।
कांग्रेस ने 50 साल से ज्यादा देश में राज्य किया। मानसून के दौरान नदियों में पानी का बहाव ज्यादा होने की स्थिति में उसका किस तरह से प्रबंधन किया जाये, यह कभी सोचा ही नहीं। जनता को उसकी हालत पर छोड़ दिया गया। सरकार ने भी कहा, तेरा रब्ब रक्खा, याने तुझे ईश्वर ही सहायता दे सकता है, हम नहीं।
2014 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने नदियों को आपस में जोडऩे का संकल्प अपने चुनावी घोषणा पत्र में किया था। इससे लोगों को आस बंधी थी कि बाढ़ जैसी विपदा से उनको भविष्य में छुटकारा मिल जायेगा। हालांकि इससे पहले 1999 अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने भी ऐसा ही वादा किया था। वह भी वादा सिर्फ वादा ही रह गया था और उसके 15 सालों बाद भाजपा ने इसे पुन: चुनावी घोषणा पत्र में शामिल किया किंतु 4 साल से ज्यादा का समय बीत गया, इस मामले में हुआ कुछ भी नहीं।
देश में एक सरकारी संस्था जिसको संसद कहा जाता है। संसद को विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश का मंदिर भी कहा जाता है। यहां देश के सबसे बड़े शुभचिंतक बैठकर चिंता करते हैं। इन शुभचिंतकों को डिजिटल भारत में भी करोड़ों भारतीयों के उजड़ जाने की खबर नहीं मिलती है। वे इस पर कोई चिंता नहीं करते हैं। एक पूरे दिन इस पर चर्चा नहीं होती और कोई भी शुभचिंतक यह नहीं कहता कि वह बाढ़ प्रभावित जनता के साथ है।
आतंकादी घटनाओं के दशकों लम्बे दौर और चार युद्ध में भी भारत ने इतने नागरिक नहीं खोये होंगे जितने बाढ़ ने। इसके बावजूद आज तक सड़क दुर्घटना से रोकथाम और बाढ़ से राहत चुनावी मुद्दे ही नहीं बने। किसी भी दल ने आगे बढ़कर नहीं कहा कि उसको वोट दिया जाये तो वह लोगों को बाढ़ से राहत दिलायेगा। सड़क दुर्घटनाओं की रोकथाम करेगा। हर साल मानसून आता है और तबाही लेकर आता है। सैकड़ों लोग मारे जाते हैं। दशकों से बाढ़ की मार झेल रहे लोगों ने भी मान लिया है कि यह कुदरत की मार है। इसमें सरकार कुछ नहीं कर सकती।
मंत्रीपरिषद के प्रधान यह घोषणा करते हैं कि देश विश्व की छठी सबसे मजबूत व्यवस्था बन गया है, किंतु उनके पास समय नहीं है कि वह अपने प्यारे सवा सौ करोड़ देशवासियों में शामिल इन करोड़ों लोगों की कुशलक्षेम पूछने के लिए वे जा आएं। वह अफ्रीका जैसे देशों में घूम आये किंतु हवाई जहाज से एक चक्कर भी बाढ़ प्रभावित इलाकों का नहीं लगाया।
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