श्रीगंगानगर। जवाहरनगर थाना पुलिस ने पांच लोगोंं को डकैती की योजना बनाते हुए गिरफ्तार करने का दावा किया है। इनके पास से सब्बल, हथोड़ा बरामद हुआ है। पुलिस ने इनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 399 और 402 के तहत मुकदमा दर्ज किया है।
आगे बढऩे से पहले हमें फ्लैश बैक में जाना होगा। 70 के दशक में जाना होगा। 1970 के दशक में हिन्दी सिनेमा जगत में डकैतों का बोलबाला होता था। उस दशक में डाकू का मुख्य किरदार निभाने वालों में अजीत ही एक प्रमुख नाम होता था। लम्बे बाल-सिर पर काली पट्टी बंधी हुई। माथे पर माता काली के उपासक के रूप में काला टीक्का। इसी दशक में ही 'शोलेÓ फिल्म भी आयी। इसमें गब्बर सिंह का नाम 50 कोस दूर तक चलता था। खौफ इतना होता था कि बकौल गब्बरसिंह, रात को नींद नहीं आती तो मां बेटे को कहती है-बेटा सो जा, नहीं तो गब्बरसिंह आ जायेगा। खूंखार इतना कि उस जमाने में भी सरकार ने उस पर 50 हजार रुपये का ईनाम भी रखा हुआ था। अजीत और गब्बरसिंह दोनों में ही कुछ समानता थी। दोनों के पास बंदूक थी। घोड़े थे। लम्बा-चौड़ा गैंग भी था। जब चाहा बस से भी तेज गति से भाग जाते थे। जीप भी पीछा नहीं कर पाती थी।
वक्त बीता। डकैतों का युग फिल्मों में खत्म हो गया। उसके स्थान पर डॉन आ गये। इन बदमाशों के पास लग्जरी वाहन आ गये। बंदूक के स्थान पर ऑटो पिस्टल आ गये। गैंग तो इनका भी होता था। दशक बदल गये। लोगों को लूटने का तरीका बदल गया, लेकिन नहीं बदला तो वो थे शक्ति के रूप में पास में हथियार रखना। गैंग के रूप में काम करना।
वहीं 1970 के दशक से देखा जाये तो उस समय भी पुलिस के पास जीप होती थी। बंदूक होती थी, लेकिन जज्बा था देश के लिए कुछ करने का। देश के लिए बलिदान भी हो जायें तो भी कोई गम नहीं होता था। परिवार के लिए भी गर्व का विषय होता था कि हमारा सदस्य देश के लिए शहादत देकर गया है। आज करीबन 50 सालों बाद पुलिस की हालत पर नजर डालें तो आज भी पुलिस वहीं की वहीं है। उनके पास आज भी बंदूक ही है। उनके पास आज भी जीप ही है। उनके पास सेफ्टी जैकेट आज भी नहीं है। लेकिन उस समय और आज के समय में पुलिस की सोच में भारी अंतर है। उस समय देश के लिए काम करने का जज्बा था तो आज उस समय के मुकाबले सैलरी बहुत ज्यादा है। थानों में भारी भरकम आय के स्रोत जन्म ले चुके हैं।
जवाहरनगर पुलिस ने आज जो डाकू पकडे हैं (डकैती की योजना बनाने वाले डाकू ही कहलाए जायेंगे), यह 70 के दशक और आजके आधुनिक युग के डाकुओं से बिलकुल ही भिन्न हैं। यहां पांच पुलिसकर्मी बिना हथियार लिये जाते हैं और डाकुओं को पकड़ लाते हैं। पुलिस की ताकत देखिये। बकौल जवाहरनगर पुलिस, रात्रिकालीन ड्यूटी अधिकारी को सूचना प्राप्त हुई थी कि 7 व्यक्ति इंदिरा वाटिका में डकैती की योजना बना रहे हैं। रात 12 बजे के बाद की बात है। इसके बाद एक एसआई, एक एएसआई, एक हवलदार और दो सिपाही जाते हैं मौके पर कार्यवाही करने के लिए। वहां सात लोग होते हैं। दो भाग जाते हैं। पांच पकड़े जाते हैं। रात का समय था, इस कारण पुलिस को कोई स्वतंत्र गवाह भी नहीं मिला। इनके पास से सब्बल, हथोड़ा मिलता है। पुलिस का दावा है कि पांचों के पास से एक ही चाकू मिला है। पुलिस के अनुसार डकैत अस्पताल के नजदीक एक एटीएम को लूटने की योजना बना रहे थे। रात लगभग 1 बजे इनको पकड़ा गया। अब आगे जो रोचक है, वह यह है कि डकैती की योजना तो बना रहे थे लेकिन वाहन लेकर नहीं गये। शायद यह स्पाइडरमैन के रिश्तेदार थे। खैर। यह लोग वहां सब्बल लेकर गये थे। शायद इनकी सोच यह होगी कि एटीएम मशीन की भी नींव होती है और नींव को उखाड़कर यह मशीन कुछ ही देर में ले आयेंगे। एक बजे तक इन लोगों ने वारदात नहीं की थी। प्रात: चार बजे शहर में युवा वर्ग सड़कों पर मॉर्निंग वॉक के लिए निकल आता है। इस तरह से इन लोगों ने प्लानिंग बना रखी थी कि तीन घंटे के अंदर ही खुदाई कर मशीन उखाड़ भी लेंगे। उसको लेकर अपने ठिकाने भी पहुंच जायेंगे। इतनी बड़ी प्लानिंग थी इसी कारण तो इन लोगों ने कोई जीप, कार, एसयूवी तक नहीं लिया। भरोसा था खुद पर। पर पुलिस ने इनको पकड़ लिया। इनको 402, 399 में गिरफ्तार किया गया है। 399 में 10 साल की सजा का प्रावधान है। 402 में 7 साल की सजा का प्रावधान है। इनका पहले कोई क्राइम रिकॉर्ड पुलिस को नहीं मिला है।
आप यकीन मानिये अगर यह लोग आज सब्बल-हथोड़ा लेकर डकैती कर जाते तो निश्चित रूप से इनका नाम ही शहर में दहशत फैला देता। फिर फोन कर किसी सेठ को धमका देते, भाई-सब्बल-हथौड़ा वाला डकैत बोल रहा हूं। पैसा दोगे या डकैती डालूं। शायद लारेंस बिश्रोई से भी बड़ा अपराधी बनने का इनका सपना बचपन से रहा होगा। तभी तो पिस्तोल के स्थान पर सब्बल लेकर निकले थे। कार-एसयूवी लेकर नहीं गये थे। कंधों पर भी सरेआम एटीएम को उठा लाते। आगे कुछ और भी रोचक जानकारी इनकी सामने आ सकती है। फिलहाल यह पता चला है कि एक छोले-कुल्चे की रेहड़ी लगाता था।
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