बस नारे ही बनकर रह गये-अटल तुम सदा याद रहोगे
श्रीगंगानगर। अटल बिहारी वाजपेयी ने विवाह नहीं किया। पूरा जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भाजपा और देश को समर्पित कर दिया। मुद्दों पर राजनीति की। अपनी ईमानदार की छवि को जिंदा बनाये रखने के लिए उन्होंने विपक्ष में तोडफ़ोड़ नहीं की और एक वोट से से संसद में अपनी सरकार का विश्वासमत खो बैठे। ऐसे नेता को तीन दिन में देश ही नहीं अपितु भाजपा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी भुला लिया। चौथे ही दिन अस्थियों को गंगा में बहा दिया गया।
अटल बिहारी वाजपेयी का लम्बी बीमारी के बाद 16 अगस्त को निधन हो गया। 17 अगस्त को उनका राजकीय सम्मान के साथ अन्तिम संस्कार किया गया और 19 अगस्त को उनकी अस्थियों को भी गंगा में विसर्जित कर दिया गया। हरिद्वार में उनकी अस्थी विसर्जन यात्रा भी निकाली गयी। इसमें हजारों भाजपाई शामिल हुए। चार दिन के भीतर ही जीवनोपरांत उनकी पूरी क्रिया को सम्पन्न कर दिया गया।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को भारत की संस्कृति और धर्म की रक्षा करने वाला संगठन माना जाता है। देश की प्राचीन संस्कृति पर नजर डाली जाये तो पता चलता है कि 12 दिन का शोक परिवार की ओर से रखा जाना आवश्यक होता है। इसको सूतक कहा जाता है। यह भारत के प्राचीन धर्म ग्रंथों में भी लिखा गया है। कांग्रेस के शासनकाल में भारत के प्राचीन धर्मग्रंथों के विरुद्ध प्रचार आरंभ हुआ और देश में 12 दिन का शोककाल सिर्फ ब्राह्मण और वैश्य आदि ही रखने लगे। शेष जातियां सात दिन के भीतर शोकसभा भी कर डालते। गंगा में विसर्जन भी हो जाता।
हरिद्वार में बैठे संत भी सात दिन से पहले गंगा में अस्थियों के विसर्जन को उचित नहीं मानते। ऐसे बहुत से परिवार होते हैं जो चौथे या पांचवें दिन अस्थियां लेकर जाते हैं और उनको वहां 7वें दिन तक रूकना पड़ता है। वहां पंडित आदि उनकी क्रिया नहीं करते।
वहीं अटल बिहारी वाजपेयी ब्राह्मण परिवार से थे। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से वे किशोरावस्था से ही जुड़े हुए थे। भारतीय जनता पार्टी के वे संस्थापक थे। अनेक बार सांसद बने। विदेश मंत्री बने। प्रधानमंत्री बने। 2008 से वे सक्रिय राजनीति से हट गये थे। इसके बाद भी वे लगातार भाजपा को मजबूत करने के लिए जो भी प्रयास हो सकते थे कर रहे थे। बीमारी के कारण वे सत्ता के केन्द्र से दूर थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगातार उनके पास जा रहे थे और उनके हाल-चाल की जानकारी ले रहे थे। 16 अगस्त को एम्स में निधन हो गया। 17 अगस्त को ही उनका अन्तिम संस्कार किया जाना, उनके शुभचिंतकों के लिए आघात था। देश के हर कोने में उनके प्रशंसक थे। अगले ही दिन संस्कार होने के कारण वे दर्शन नहीं कर पाये। देश के सर्वमान्य नेता के पार्थिव शरीर को कम से कम तीन दिन रखा जाता तो पूर्व प्रधानमंत्री को भी सच्ची श्रद्धांजली हो सकती थी ताकि देश का हर वो व्यक्ति जो उनका मुरीदा था, वह दर्शन कर पाता। वहीं 19 अगस्त को उनकी अस्थियां भी विसर्जित होना सबके लिए आश्चर्य था।
देश का प्रधानमंत्री रहे व्यक्ति के लिए क्या देश के लिए सात दिन भी शोक व्यक्त करने के लिए नहीं थे। जिस व्यक्ति ने परिवार से पहले देश को माना, उस व्यक्ति के जीवन की अन्तिम क्रिया को हिन्दुस्तान की संस्कृति के अनुरूप करने के लिए भाजपा के शीर्ष नेतृत्व और उनके परिवार के पास समय नहीं होना सबको आश्चर्यचकित करना था। हैरान करने वाला कदम था। जो पार्टी और आरएसएस हिन्दुस्तान की पुरानी संस्कृति को जिंदा करने की वकालत करती है, उसी संगठन का महान प्रचारक, पत्रकार, महाकवि और पार्टी का सबसे बड़ा नेता भारतीय संस्कृति के अनुरूप विदा नहीं हो पाया।
श्रीगंगानगर। अटल बिहारी वाजपेयी ने विवाह नहीं किया। पूरा जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भाजपा और देश को समर्पित कर दिया। मुद्दों पर राजनीति की। अपनी ईमानदार की छवि को जिंदा बनाये रखने के लिए उन्होंने विपक्ष में तोडफ़ोड़ नहीं की और एक वोट से से संसद में अपनी सरकार का विश्वासमत खो बैठे। ऐसे नेता को तीन दिन में देश ही नहीं अपितु भाजपा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी भुला लिया। चौथे ही दिन अस्थियों को गंगा में बहा दिया गया।
अटल बिहारी वाजपेयी का लम्बी बीमारी के बाद 16 अगस्त को निधन हो गया। 17 अगस्त को उनका राजकीय सम्मान के साथ अन्तिम संस्कार किया गया और 19 अगस्त को उनकी अस्थियों को भी गंगा में विसर्जित कर दिया गया। हरिद्वार में उनकी अस्थी विसर्जन यात्रा भी निकाली गयी। इसमें हजारों भाजपाई शामिल हुए। चार दिन के भीतर ही जीवनोपरांत उनकी पूरी क्रिया को सम्पन्न कर दिया गया।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को भारत की संस्कृति और धर्म की रक्षा करने वाला संगठन माना जाता है। देश की प्राचीन संस्कृति पर नजर डाली जाये तो पता चलता है कि 12 दिन का शोक परिवार की ओर से रखा जाना आवश्यक होता है। इसको सूतक कहा जाता है। यह भारत के प्राचीन धर्म ग्रंथों में भी लिखा गया है। कांग्रेस के शासनकाल में भारत के प्राचीन धर्मग्रंथों के विरुद्ध प्रचार आरंभ हुआ और देश में 12 दिन का शोककाल सिर्फ ब्राह्मण और वैश्य आदि ही रखने लगे। शेष जातियां सात दिन के भीतर शोकसभा भी कर डालते। गंगा में विसर्जन भी हो जाता।
हरिद्वार में बैठे संत भी सात दिन से पहले गंगा में अस्थियों के विसर्जन को उचित नहीं मानते। ऐसे बहुत से परिवार होते हैं जो चौथे या पांचवें दिन अस्थियां लेकर जाते हैं और उनको वहां 7वें दिन तक रूकना पड़ता है। वहां पंडित आदि उनकी क्रिया नहीं करते।
वहीं अटल बिहारी वाजपेयी ब्राह्मण परिवार से थे। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से वे किशोरावस्था से ही जुड़े हुए थे। भारतीय जनता पार्टी के वे संस्थापक थे। अनेक बार सांसद बने। विदेश मंत्री बने। प्रधानमंत्री बने। 2008 से वे सक्रिय राजनीति से हट गये थे। इसके बाद भी वे लगातार भाजपा को मजबूत करने के लिए जो भी प्रयास हो सकते थे कर रहे थे। बीमारी के कारण वे सत्ता के केन्द्र से दूर थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगातार उनके पास जा रहे थे और उनके हाल-चाल की जानकारी ले रहे थे। 16 अगस्त को एम्स में निधन हो गया। 17 अगस्त को ही उनका अन्तिम संस्कार किया जाना, उनके शुभचिंतकों के लिए आघात था। देश के हर कोने में उनके प्रशंसक थे। अगले ही दिन संस्कार होने के कारण वे दर्शन नहीं कर पाये। देश के सर्वमान्य नेता के पार्थिव शरीर को कम से कम तीन दिन रखा जाता तो पूर्व प्रधानमंत्री को भी सच्ची श्रद्धांजली हो सकती थी ताकि देश का हर वो व्यक्ति जो उनका मुरीदा था, वह दर्शन कर पाता। वहीं 19 अगस्त को उनकी अस्थियां भी विसर्जित होना सबके लिए आश्चर्य था।
देश का प्रधानमंत्री रहे व्यक्ति के लिए क्या देश के लिए सात दिन भी शोक व्यक्त करने के लिए नहीं थे। जिस व्यक्ति ने परिवार से पहले देश को माना, उस व्यक्ति के जीवन की अन्तिम क्रिया को हिन्दुस्तान की संस्कृति के अनुरूप करने के लिए भाजपा के शीर्ष नेतृत्व और उनके परिवार के पास समय नहीं होना सबको आश्चर्यचकित करना था। हैरान करने वाला कदम था। जो पार्टी और आरएसएस हिन्दुस्तान की पुरानी संस्कृति को जिंदा करने की वकालत करती है, उसी संगठन का महान प्रचारक, पत्रकार, महाकवि और पार्टी का सबसे बड़ा नेता भारतीय संस्कृति के अनुरूप विदा नहीं हो पाया।
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