Friday, August 10, 2018

सीएम ने भेजा था एसपी बनाकर, महावर जी खुद को समझ बैठे थे निजाम


नागौर में परेशानी में, गंगानगर में नहीं सुनते थे फरियादियों को भी
भोले-भाले एसपी को देखकर कुख्यात पुलिस अधिकारी ने लपेट लिया था अपनी बातों में
सरकार का इनाम दिलाकर लिया था झांसें में
श्रीगंगानगर। श्रीगंगानगर जिले में पुलिस में तैनात ज्यादातर अधिकारी और कर्मचारी शेखावाटी क्षेत्र के होते हैं। यह लोग जिले को ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम से पुकारते हैं। इसका अर्थ यह होता है कि यहां आकर लूटो और मौज करो। यही कारण रहा है कि श्रीगंगानगर जिले में पिछले दो दशक से वही अधिकारी घूम-फिरकर वापिस आ जाते हैं जो तब्दील होते हैं। पहले एसएचओ बनकर, फिर डीवाईएसपी और फिर एडीशनल एसपी बनकर। यही घूमते रहते हैं। दो दशक से जो अधिकारी यहां लगातार हैं वे अपने उच्चाधिकारियों को अपनी बातों में भी लेना जानते हैं और हरेन्द्र महावर भी उनके शिकार हो गये। वे पहले और आखिरी शिकार नहीं थे। उन अधिकारियों ने अपने झांसें में लिया और फिर उनका ब्रेनवाश कर उनको समझा दिया कि वे एसपी नहीं बल्कि निजाम हैं। भोले-भाले महावर जी भी खुद को यही समझ बैठे। अब वे नागौर जैसे जिले में है, जो जातिगत राजनीति का एक बड़ा केन्द्र है।
महावर ने जब जोधपुर से यहां कार्यभार संभाला था तो वे एक अच्छे अधिकारी की छवि लेकर आये थे और जब गये थे तो उनकी छवि पुलिस विभाग में लापरवाह अधिकारियों में शामिल हो गयी थी। यही कारण रहा कि उनको चुनावों के समय नागौर जिला दिया गया। वे गंगानगर के पहले एसपी हैं जो श्रीगंगानगर के बाद नागौर गये हैं। अच्छे अधिकारियों को सरकार अलवर, भीलवाड़ा, उदयपुर जैसे जिलों में भेजकर उनका सम्मान करती है। लापरवाह अधिकारियों को अपेक्षाकृत कम महत्व के जिलों में भेजा जाता है। यह जिले ऐसे होते हैं, जहां चैन की सांस कम आती है और टेंशन ज्यादा रहती है। नागौर जिला जाट राजनीति का एक प्रमुख केन्द्र रहा है और चुनावों के समय उस जिले का एसपी बनना काफी मुश्किल होता है। परेशानी बहुत होती है और इस परेशानी को फेस भी महावर कर रहे हैं।
तीन दिन पहले माननीय महावर साहब जोधपुर हाइकोर्ट में पेशी पर गये थे। वहां वे अनेक अधिकारियों से भी मिले। उनके चेहरे पर परेशानी साफ देखी जा रही थी। जिस भी अधिकारी ने उनको देखा, वो यह समझ चुका था कि नागौर में महावर साहब परेशान हैं। दुखी हैं। चुनावों तक उनका वहां रहना मुश्किल हो सकता है।
वसुंधरा राजे ने उनको मेहनती अधिकारी समझा था। इस कारण वे उनकी गुडबुक में भी थे। गंगानगर आकर वे लोकसेवक नहीं बल्कि स्वयं को निजाम समझ बैठे थे। उनको ऐसा एक अधिकारी ने ही समझाया था। यह अधिकारी उनका नजदीकी बन गया था और धीरे-धीरे यह हालात हो गये कि आदरनीय महावर साहब दफ्तर से ही गायब रहने लगे। वे लंच के बाद आते ही नहीं थे और रावला-घड़साना आदि दूर-दराज से आने वाले लोग उनका इंतजार करते रहते। हालात यह होती थी कि एडीशनल एसपी भी गायब और फरियाद सुनने की बारी आती थी सीओ एससी-एसटी की। दोनों उच्चाधिकारी गायब रहते थे तो सीओ  कार्यवाहक एसपी हो जाते थे। परिवाद कक्ष के प्रभारी उनको सीओ के पास लेकर जाते थे और ग्रामीणों को यह भी नहीं पता होता था कि जिस अधिकारी से मिलाया जा रहा है उससे उच्च रैंक का अधिकारी तो रायसिंहनगर में भी बैठता है। लोग परेशान। थानाधिकारी खुश। उनको कोई कुछ कहने वाला नहीं। उनकी दादागिरी शुरू। जिसको चाहा, उसको उठाया। जिसको चाहा उसको मुकदमे से बाहर कर दिया। खुलेआम यह खेल चल रहा था। अपराधिक तत्व पुलिस पर हावी हो गये थे और यह हवा जिले में बन गयी थी कि पुलिस को खरीदा जा सकता है और अनेक असामाजिक तत्वों ने ऐसा करके भी दिखाया।
मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे जब गंगानगर आयी तो उनको यहां के हालात की जानकारी मिली। सांध्यदीप ने भी इस मामले में एक किरदार का रोल निभाया। अब नागौर में महावर साहब परेशान हैं। दुखी हैं। उनके दुख और परेशानी को दूर करने वाला वो अधिकारी नहीं है जो दिल्ली से उनको सम्मान दिलाकर लाया था। इस पुलिस अधिकारी का भाई अलवर में राज्य सरकार का राजस्व वसूलने वाला अधिकारी है। इस अधिकारी ने ही  अपने भाई के अधिकारी को सर्वश्रेष्ठ जिला एसपी का सम्मान दिला दिया। लोग त्राहि-त्राहि कर रहे थे। लोगों का जुल्म सह रहे थे और उसी जिले के एसपी को देश के सर्वश्रेष्ठ एसपी का सम्मान मिल रहा था। यह सम्मान पाकर भोले-भाले महावर के पांव जमीन पर नहीं लग रहे थे। वे इतने खुश थे कि पुलिस लाइन में जाकर बच्चों के साथ कांच की गोलियां खेलने लगे थे। कांच की गोलियां खेलते हुए वे अपने फोटो भी सोशल मीडिया पर वायरल करते थे। मीडिया में पब्लिश करवाते थे। वही महावर अब परेशान हैं। जो यहां निजाम बनकर काम कर रहे थे उनको समझ नहीं आ रहा कि उनकी परेशानी कैसे दूर होगी। उनको अब ध्यान में आ गया है कि वे तो लोकसेवक हैं। एसपी हैं। जिनकी जिम्मेदारी होती है जिले में कानून व्यवस्था बनाने की। अगर वे समय रहते कुछ सच्चाई को देख पाते तो आज इतना परेशान नहीं होते।

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